*राजस्थान के खनिज संसाधन*
अभ्रक
झारखण्ड, आंध्र के बाद राजस्थान का अभ्रक में तीसरा स्थान है।
गैग्नेटाइट, पैग्मेटाइट इसके दो मुख्य अयस्क है।
सफेद अभ्रक को रूबी अभ्रक, गुलाबी अभ्रक को बायोटाइट कहते है।
अभ्रक के चूरे से चादरें बनाना माइकेनाइट कहलाता है।
अभ्रक की ईंट भीलवाड़ा में बनती है।
भीलवाड़ा(सर्वाधिक) - दांता, टूंका, फूलिया, शाहपुरा, प्रतापपुरा
उदयपुर - चम्पागुढा, सरवाड़गढ़, भगतपुरा
थोड़ी बहुत मात्रा में अजमेर, जयपुर, बुदी, सीकर, और डूंगरपुर में भी मिलता है।
जिप्सम
इसे सेलरवड़ी, हरसौंठ व खडि़या मिट्टी भी कहते है।
जिप्सम का रवेदार रूप् सैलेनाइट कहलाता है।
नागौर(सर्वाधिक) - भदवासी, मांगलोद, धांकोरिया
बीकानेर - जामसर(देश की सबसे बड़ी खान), पुगल,बिसरासर, हरकासर
जैसलमेर - मोहनगढ़, चांदन, मचाना
गंगानगर - सुरतगढ़, तिलौनिया
हनुमानगढ़ - किसनपुरा, पुरबसर
ऐस्बेस्टाॅस
देश का 90 प्रतिशत राजस्थान में मिलता है।
इसे राॅकवुल व मिनरल सिल्क भी कहते है।
यह सीमेंट के चादरें, पाइप, टाइल्स, बायलर्स निर्माण में काम आता है।
एम्फीबोलाइट और क्राइसोलाइट दो किस्में है।
राजस्थान में एम्फीबाॅल किस्म मिलती है।
उदयपुर(सर्वाधिक) - ऋषभदेव, खेरवाड़ा, सलूम्बर
राजसमंद - नाथद्वारा
डूंगरपुर - पीपरदा, देवल, बेमारू, जकोल
बुलस्टोनाइट
इसका खनन केवल राजस्थान में होता है।
यह पेंट, कागज व सिरेमिक उद्योग में काम आता है।
सिरोही - खिल्ला, बैटका
अजमेर - रूपनगढ़, पीसागांव
उदयपुर - खेड़ा, सायरा
डूंगरपुर - बोड़किया
बेन्टोनाइट
यह चीनी मिट्टी के बर्तनों पर पाॅलिश करने, काॅस्मेटिक्स और वनस्पति तेलों को साफ करने मंे प्रयुक्त होता है। पानी में भिगोने पर यह फूल जाता है।
बाड़मेर - हाथी की ढाणी, गिरल, अकाली
बीकानेर, सवाईमाधोपुर
फ्लोराइट या फ्लोर्सपार
यह चीनी मिट्टी के बर्तनों, सफेद सीमेंट लोह और अम्ल उघोगों में काम आता है।
यह अभ्रक के साथ सहउत्पाद के रूप में निकलता है।
डूंगरपुर - माण्डों की पाल, काहिला
जालौर, सीकर, सिरोही, अजमेर
फ्लोर्सपार बेनिफिशियल संयत्र(1956) मांडों की पाल
पन्ना या हरी अग्नि या मरकत या एमरल्ड
उदयपुर - काला गुमान, तीखी, देवगढ़
राजसमंद - कांकरोली
अजमेर - गुडास, राजगढ़,बुबनी
हाल ही में ब्रिटेन की माइन्स मैनेजमेण्ट कंम्पनी ने बुबानी(अजमेर) से गमगुढ़ा(राजसमंद) व नाथद्वारा तक फाइनग्रेड पन्ने की विशाल पट्टी का पता लगाया।
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